रायपुर, 13 अगस्त 2025।
नवा रायपुर के सम्मेलन कक्ष में मंगलवार को एक विशेष माहौल था—प्रदेश भर से आए खाद्य, सहकारिता और कृषि विभाग के अधिकारी एक ही उद्देश्य लेकर जुटे थे: धान उपार्जन प्रणाली को और पारदर्शी, तेज़ और तकनीकी रूप से मजबूत बनाना। यह राज्य स्तरीय कार्यशाला भारत सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा आयोजित की गई, जिसमें भारतीय खाद्य निगम (FCI) के सीएमडी आशुतोष अग्निहोत्री, भारत सरकार की संयुक्त सचिव सुश्री शिखा और छत्तीसगढ़ की खाद्य सचिव श्रीमती रीना बाबा साहेब कंगाले समेत कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यशाला की शुरुआत हुई और फिर एक-एक करके ऐसे विषयों पर चर्चा हुई जो सीधे किसानों और उपभोक्ताओं के जीवन से जुड़े हैं। कस्टम मिलिंग में नवाचार, ब्रोकन चावल के नए नियम, राइस मिलों के संयुक्त भौतिक सत्यापन की अद्यतन प्रक्रिया, और सेंट्रल फूड प्रोक्योरमेंट एवं स्टोरेज पोर्टल के जरिए उपार्जन और वितरण को और कारगर बनाने जैसे मुद्दे केंद्र में रहे।
संयुक्त सचिव सुश्री शिखा ने बताया कि अब 25% तक ब्रोकन चावल को मशीनों के जरिए 10% तक कम किया जाएगा और बाकी चावल खुले बाजार में बेचा जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि एफसीआई और छत्तीसगढ़ सरकार के सहयोग से जून माह में रिकॉर्ड 188 रैक के जरिए 6 लाख मीट्रिक टन चावल का भंडारण संभव हुआ, जिसे कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में कल्याणकारी योजनाओं के तहत भेजा गया।
कार्यशाला में यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि धान उपार्जन में पारदर्शिता लाने के लिए अब तकनीक ही सबसे बड़ा हथियार होगी। राइस मिलों के सत्यापन के लिए सॉफ्टवेयर आधारित चयन प्रणाली अपनाई जाएगी और पीसीएसएपी सॉफ्टवेयर के जरिए उपार्जन केंद्रों में हुए सुधार की जानकारी दर्ज होगी। दावों के निपटारे में तेजी लाने के लिए ऑनलाइन स्कैन मॉड्यूल लागू किया जाएगा और चावल भंडारण में रूट ऑप्टिमाइजेशन की रणनीति अपनाई जाएगी।
प्रदेश के लगभग 25 लाख किसान 2,739 उपार्जन केंद्रों में धान बेचते हैं, और अब खरीफ 2025 से इन किसानों के लिए एग्रीस्टेक पोर्टल पर पंजीयन अनिवार्य कर दिया गया है। इसका मकसद है—फर्जी खरीदी पर सख्त नियंत्रण। जिला कलेक्टरों को इस पंजीयन प्रक्रिया में शत-प्रतिशत सफलता के लिए विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया।
खाद्य सचिव रीना बाबा साहेब कंगाले ने कार्यशाला में प्रदेश में लागू नवाचारों—‘चावल उत्सव’, ‘टोकन तुहर हाथ’ और बस्तर की ‘नियद नेल्लानार’ योजना—की जानकारी साझा की, जिसे भारत सरकार के अधिकारियों ने सराहा। समापन सत्र में अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर आभार व्यक्त किया गया।
यह कार्यशाला केवल एक प्रशासनिक बैठक नहीं थी, बल्कि किसानों और उपभोक्ताओं के बीच भरोसे की नई बुनियाद रखने का प्रयास थी—जहां तकनीक और नीति मिलकर पारदर्शिता और निष्पक्षता की नई मिसाल गढ़ेंगे।
