दुर्ग, 13 अगस्त 2025।
भिलाई-दुर्ग में जमीन से जुड़ा अब तक का सबसे बड़ा घोटाला सामने आया है। भू माफियाओं ने मुरमुंदा पटवारी हल्का में सैकड़ों एकड़ शासकीय और निजी जमीन पर फर्जीवाड़ा कर उसे अलग-अलग व्यक्तियों के नाम दर्ज करा दिया। यही नहीं, इस फर्जी खसरे को आधार बनाकर सरकारी जमीन बैंक में गिरवी रख दी गई और करोड़ों रुपये का लोन भी पास करा लिया गया।
यह कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं—जहां अपराधी सिर्फ जमीन हड़पने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि तकनीकी हैकिंग का सहारा लेकर सरकारी रिकॉर्ड में ही घुसपैठ कर गए।
मुरमुंदा हल्का में गड़बड़ी का खुलासा
जांच में सामने आया कि मुरमुंदा हल्का क्रमांक 16 के पटवारी का आईडी-पासवर्ड हैक कर इस पूरे खेल को अंजाम दिया गया। प्रभावित क्षेत्र में ग्राम मुरमुंदा, अछोटी, चेटुवा और बोरसी शामिल हैं। यहां कुल 765 एकड़ (करीब 309 हेक्टेयर) जमीन का फर्जी बंटवारा कर दस्तावेज बनाए गए।
- मुरमुंदा: 75 हेक्टेयर शासकीय, 22 हेक्टेयर निजी
- अछोटी: 45.304 हेक्टेयर शासकीय, 27.087 हेक्टेयर निजी
- चेटुवा: 87.524 हेक्टेयर शासकीय
- बोरसी: 47.742 हेक्टेयर निजी
सिंडिकेट का नेटवर्क
आयुक्त सत्यनारायण राठौर ने बताया कि यह कोई अकेला काम नहीं था, बल्कि एक संगठित सिंडिकेट के जरिए हुआ। इसके तार रायपुर, जांजगीर-चांपा, रायगढ़, कोरबा समेत कई जिलों से जुड़े पाए गए। फर्जी नामों—जैसे दिनूराम यादव, एसराम, शियाकांत वर्मा, हरिशचन्द्र निषाद, सुरेन्द्र कुमार, जयंत—के नाम पर शासकीय जमीन दर्ज की गई।
इसके बाद फर्जी ऋण पुस्तिका के जरिए बैंकों से भारी भरकम लोन निकाला गया।
- 25 जून 2025: दिनूराम यादव के नाम 46 लाख का लोन
- 2 जुलाई 2025: दूसरे किसान के नाम 36 लाख का लोन
ऋण पुस्तिका की जांच में ही यह खेल सामने आया।
प्रशासन की कार्रवाई
जांच में दोषी पाए जाने पर पाटन के पटवारी मनोज नायक और मुरमुंदा के पटवारी कृष्ण कुमार सिन्हा को निलंबित किया गया। साथ ही 18 पटवारियों का तत्काल तबादला कर दिया गया है। भुइयां ऐप में छेड़छाड़ के इस मामले की रिपोर्ट राज्य भू-राजस्व अभिलेख आयुक्त को भेजी गई है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
डिप्टी सीएम और जिले के प्रभारी मंत्री विजय शर्मा ने साफ कहा,
“765 इंच जमीन की भी गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं होगी, और यहां तो 765 एकड़ का मामला है। दोषी चाहे कोई भी हो, कठोर कार्रवाई होगी। यह विष्णुदेव सरकार है—सुशासन भी है और सुदर्शन भी।”
कहानी का मानवीय पहलू
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि इन जमीनों में उनकी पुश्तैनी मेहनत और यादें जुड़ी हैं। एक किसान ने बताया,
“हम तो बस यही जानते थे कि हमारी जमीन हमारे नाम है, पर जब बैंक से नोटिस आया तो होश उड़ गए।”
इस पूरे घोटाले ने ग्रामीणों के मन में सरकारी रिकॉर्ड की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि क्या सच में इस सिंडिकेट के सभी तार खोले जाएंगे या फिर यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा।
