नई दिल्ली, 6 अगस्त 2025 —
हर साल 7 अगस्त को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारत की सांस्कृतिक विरासत, आत्मनिर्भरता और सामुदायिक एकता का प्रतीक बन गया है। इस अवसर पर माननीय वस्त्र राज्य मंत्री श्री पबित्रा मार्गेरिटा द्वारा लिखा गया विशेष लेख हथकरघा क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व, वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं पर गहन प्रकाश डालता है।
श्री मार्गेरिटा ने लेख में कहा कि यह दिवस 1905 के स्वदेशी आंदोलन की याद दिलाता है, जब हाथ से बुना कपड़ा न केवल वस्त्र था बल्कि आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक प्रतिरोध का प्रतीक बन गया था। आज यही हथकरघा क्षेत्र 35 लाख से अधिक बुनकरों को रोजगार दे रहा है, जिनमें 72% महिलाएँ शामिल हैं।
हथकरघा: एक स्थायी और समृद्ध विरासत
लेख में कहा गया है कि भारत की हथकरघा परंपरा हड़प्पा और मोहनजोदड़ो काल से जुड़ी हुई है। बनारसी, कांजीवरम, मुगा रेशम, पश्मीना जैसे विविध और अद्वितीय शिल्प भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। हर साड़ी, हर शॉल अपने आप में एक जीवंत कथा है।
पूर्वोत्तर भारत: अवसरों का करघा
श्री मार्गेरिटा ने पूर्वोत्तर को भारत का हथकरघा केंद्र बताया, जहाँ देश के 52% हथकरघा श्रमिक रहते हैं। असम के सुआलकुची को ‘असम का मैनचेस्टर’ कहा जाता है। इस क्षेत्र में हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं:
- 123 छोटे समूहों को वित्तीय सहायता
- शिवसागर, इम्फाल पूर्व और सुआलकुची में परियोजनाएँ
- 3.08 लाख बुनकरों का बीमा योजनाओं में नामांकन
पुनरुद्धार से पुनरुत्थान तक
राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) और कच्चा माल आपूर्ति योजना (आरएमएसएस) जैसी योजनाओं ने बुनकरों को कच्चे माल, ऋण, और आधुनिक उपकरणों तक पहुँच दी है।
नए हथकरघा पार्कों की स्थापना, डिज़ाइन संस्थानों से साझेदारी, और डिजिटल रंग चयन तथा ब्लॉकचेन तकनीक के उपयोग ने इस पारंपरिक क्षेत्र को आधुनिकता से जोड़ दिया है।
बाजार तक सीधी पहुँच और ई-कॉमर्स
श्री मार्गेरिटा के अनुसार, बुनकरों को IndiaHandmade.com, GeM, और प्रदर्शनियों से जोड़कर बिचौलियों को खत्म किया जा रहा है। अब तक 106 हथकरघा उत्पादों को GI टैग भी मिल चुका है, जिससे उनकी विशिष्ट पहचान और गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।
कौशल विकास, सुरक्षा और स्थायित्व
युवाओं को पारंपरिक शिल्प सिखाने के साथ ही स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और शिक्षा सहायता जैसी योजनाओं से उन्हें जोड़ा गया है। IIT दिल्ली की नई रिपोर्ट के माध्यम से पर्यावरणीय स्थायित्व सुनिश्चित किया जा रहा है। यह रिपोर्ट कार्बन उत्सर्जन आकलन में मदद करती है, जिससे हरित उत्पादन मॉडल को बढ़ावा मिलेगा।
भविष्य की दिशा: आत्मा, समर्थन और विस्तार
श्री मार्गेरिटा ने स्पष्ट किया कि भविष्य AI तकनीक, स्टार्टअप ग्रांट, डिजिटल साक्षरता और फेलोशिप योजनाओं पर आधारित होगा। इससे न केवल उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा बल्कि हथकरघा क्षेत्र एक वैश्विक प्रेरणा स्रोत बन सकेगा।
उनके अनुसार, “हथकरघा 2047 तक विकसित भारत की दिशा में हमारी यात्रा में एक प्रमुख प्रेरक शक्ति रहेगा।” उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के संदेश को उद्धृत करते हुए कहा, “हथकरघा को हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए और उन्हें वह सम्मान देना चाहिए जिसके वे अधिकारी हैं।“
