अण्डा ग्राम पंचायत की पहल से राजकुमार टंडन बने आत्मनिर्भर, स्वच्छता के साथ आजीविका को मिला नया आयाम

दुर्ग, 14 जुलाई 2025:
ग्राम पंचायत अण्डा ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत एक अभिनव पहल करते हुए स्वच्छता और आजीविका को एक साथ जोड़ा है। इस पहल का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं राजकुमार टंडन, जो कभी अवैध ठेले में पान की दुकान चलाते थे, लेकिन अब एक पक्की दुकान में बिना किराया दिए व्यवसाय संचालित कर रहे हैं।


स्वच्छता परिसर बना आत्मनिर्भरता का केंद्र

ग्राम पंचायत अण्डा में 5 लाख रुपये की लागत से वर्ष 2024 में एक सार्वजनिक शौचालय परिसर का निर्माण कराया गया। परंतु यह पहल सिर्फ स्वच्छता तक सीमित नहीं रही। पंचायत ने परिसर के पास की मुख्य सड़क और बस स्टैंड की स्थिति को ध्यान में रखते हुए वहां एक आजीविका केंद्र भी विकसित किया। परिसर में एक कमरा दुकान के रूप में तैयार किया गया और उसे एक जरूरतमंद ग्रामीण राजकुमार टंडन को निःशुल्क उपलब्ध कराया गया।


राजकुमार की कहानी: अवैध ठेले से पक्की दुकान तक

राजकुमार ने बताया कि पहले वह एक अस्थायी ठेले पर पान भंडार चलाते थे, जो अवैध स्थल पर था और आय भी सीमित थी। लेकिन आज वह:

  • एक पक्की दुकान में काम कर रहे हैं
  • फ्रिज तक खरीद पाए हैं
  • रोजमर्रा के सामान, पान और ठंडे पेय बेचते हैं
  • औसतन ₹12,000 प्रति माह की कमाई कर लेते हैं
  • शौचालय परिसर की देखरेख भी खुद करते हैं

उनका कहना है कि अब वे परिवार की बेहतर देखभाल कर पा रहे हैं और गांव के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं।


सफलता के सूत्रधार

राजकुमार ने इस सफलता के लिए धन्यवाद व्यक्त किया:

  • कलेक्टर श्री अभिजीत सिंह
  • जिला पंचायत सीईओ श्री बजरंग दुबे
  • जनपद पंचायत दुर्ग सीईओ श्री रूपेश पांडे
  • और ग्राम पंचायत अण्डा के सभी पदाधिकारियों को

उन्होंने कहा कि यह पहल न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रही है, बल्कि ग्राम पंचायत के विकास मॉडल का भी उदाहरण बन गई है।


एक सफल मॉडल: स्वच्छता + आजीविका

यह पहल एक सफल मॉडल के रूप में सामने आई है, जहां:

  • स्वच्छता व्यवस्था को मजबूत किया गया
  • साथ ही एक व्यक्ति को आजीविका का स्थायी साधन भी मिला
  • यह मॉडल आर्थिक सशक्तिकरण, स्वावलंबन, और सामाजिक समावेशन का श्रेष्ठ उदाहरण है

निष्कर्ष

ग्राम पंचायत अण्डा की यह पहल दर्शाती है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में यदि रचनात्मक सोच और स्थानीय जरूरतों को जोड़ा जाए, तो वे ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मील का पत्थर बन सकती हैं। राजकुमार टंडन की कहानी इस बात का उदाहरण है कि एक छोटा अवसर भी किसी का जीवन बदल सकता है।