नई दिल्ली, 8 जुलाई 2025:
देशभर में आज (बुधवार) को एक बड़ी राष्ट्रव्यापी हड़ताल यानी ‘भारत बंद’ का आयोजन किया गया है, जिसमें 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों के शामिल होने की संभावना जताई गई है। यह हड़ताल 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मोर्चे के आह्वान पर की जा रही है, जिसका उद्देश्य केंद्र सरकार की “श्रम विरोधी, किसान विरोधी और कॉरपोरेट समर्थक” नीतियों के खिलाफ विरोध दर्ज कराना है।
प्रभावित क्षेत्र: बैंकिंग से लेकर कोयला खनन तक
बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाएं, कोयला खनन, राज्य परिवहन सेवाएं, फैक्ट्रियां और कई अन्य सार्वजनिक सेवाएं इस हड़ताल से बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं। हिंद मजदूर सभा के नेता हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि यह हड़ताल देश की प्रमुख सार्वजनिक सेवाओं को प्रभावित करेगी और सरकार पर दबाव बनाएगी कि वह श्रमिकों की बात सुने।
AITUC की अपील
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की महासचिव अमरजीत कौर ने बताया कि “यह हड़ताल कई महीनों की तैयारियों का परिणाम है और इसमें औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्र के श्रमिक शामिल होंगे। इसके अलावा किसान और ग्रामीण मजदूर संगठन भी इस हड़ताल में भाग लेंगे।”
17 सूत्रीय मांगों की अनदेखी
संघों ने बताया कि पिछले साल श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को 17 सूत्रीय मांगपत्र सौंपा गया था, जिसमें न्यूनतम वेतन, स्थायी रोजगार, पेंशन सुरक्षा, सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण रोकने जैसी मांगे थीं। लेकिन सरकार ने न केवल इन मांगों की अनदेखी की, बल्कि पिछले 10 वर्षों में श्रम सम्मेलन भी नहीं बुलाया, जो दर्शाता है कि सरकार श्रमिकों की समस्याओं को लेकर कितनी उदासीन है।
विवादित श्रम संहिताएं केंद्र में
संघों ने कहा कि सरकार द्वारा लागू की गई चार नई श्रम संहिताएं (Labour Codes) श्रमिकों के अधिकारों को खत्म करने और ट्रेड यूनियनों को कमजोर करने के उद्देश्य से लाई गई हैं। ये संहिताएं:
- सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार को समाप्त करती हैं,
- हड़ताल करने के अधिकार को सीमित करती हैं,
- काम के घंटे बढ़ाती हैं,
- और मजदूर कानूनों के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी से बाहर करती हैं।
किसानी संगठन भी समर्थन में
संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि मजदूर संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने भी इस हड़ताल को समर्थन दिया है और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर जनसंपर्क और प्रदर्शन की योजना बनाई है।
पहले भी हुए हैं राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन
यह पहली बार नहीं है जब ट्रेड यूनियनें इस तरह की हड़ताल कर रही हैं। इससे पहले 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022, और 16 फरवरी 2024 को भी इस तरह की व्यापक हड़तालें हो चुकी हैं।
निष्कर्ष
यह हड़ताल न केवल सरकार के श्रम और आर्थिक नीतियों के खिलाफ एकजुट विरोध का प्रदर्शन है, बल्कि यह सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण, ठेकेदारी प्रणाली, और श्रमिकों की अनदेखी के खिलाफ एक देशव्यापी चेतावनी भी है। सरकार की प्रतिक्रिया अब इस आंदोलन के स्वरूप और दिशा को तय करेगी।
