रायपुर, 19 मार्च: एनआईटी रायपुर में कार्यरत 42 संविदा और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के नियमितिकरण की मांग पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट के जस्टिस एके प्रसाद की एकलपीठ ने आदेश दिया कि इन कर्मचारियों को चार महीने के भीतर नियमित किया जाए, क्योंकि वे पिछले 10 से 16 वर्षों से संस्थान में कार्यरत हैं और उनके पास पर्याप्त अनुभव है।
याचिका में क्या कहा गया?
याचिकाकर्ताओं नीलिमा यादव, रश्मि नागपाल और 40 अन्य कर्मचारियों ने अपने अधिवक्ता दीपाली पाण्डेय के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया कि:

- उनकी नियुक्ति विधिवत विज्ञापन जारी करने के बाद लिखित परीक्षा, इंटरव्यू और मेरिट के आधार पर हुई थी।
- वे शैक्षणिक योग्यता और अनुभव दोनों रखते हैं।
- वे नियमित पदों के विरुद्ध कार्यरत हैं और 10 साल से अधिक समय से सेवा दे रहे हैं।
कोर्ट ने किन कानूनी मिसालों का हवाला दिया?
याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया गया, जिनमें शामिल हैं:
- स्टेट ऑफ कर्नाटक विरुद्ध उमा देवी
- स्टेट ऑफ कर्नाटक विरुद्ध एमएल केसरी
- विनोद कुमार व अन्य विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया
- स्टेट ऑफ उड़ीसा विरुद्ध मनोज कुमार प्रधान
- श्रीपाल व अन्य विरुद्ध नगर निगम गाजियाबाद
कोर्ट ने इन फैसलों को आधार बनाते हुए कहा कि जब कर्मचारी लंबे समय से नियमित पदों पर कार्यरत हैं और पर्याप्त अनुभव रखते हैं, तो उन्हें नियमित किया जाना न्यायसंगत होगा।
एनआईटी ने क्यों किया विरोध?
एनआईटी रायपुर के अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि संस्थान में नियमितिकरण के लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं हैं, इसलिए इन कर्मचारियों को स्थायी नहीं किया जा सकता। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि जब कर्मचारी 10-16 वर्षों से सेवा दे रहे हैं, तो उन्हें उसी पद पर नियमित किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट का निर्देश
हाईकोर्ट ने एनआईटी रायपुर को चार महीने के भीतर सभी 42 कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश दिया है। इस फैसले से संविदा और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को बड़ी राहत मिली है और अन्य सरकारी संस्थानों में कार्यरत ठेका कर्मचारियों के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।
