छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष लगातार जारी है। इस बीच, नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र के रेकावाया गांव में स्थित एक स्कूल को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। जहां सुरक्षा बलों और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने इसे माओवादी स्कूल और प्रशिक्षण केंद्र बताया है, वहीं गांव के लोगों का दावा है कि यह स्कूल 13 ग्राम पंचायतों द्वारा संचालित एक ‘भूमकाल छात्रावास’ है।
क्या है मामला?
मई 2024 में रेकावाया गांव के पास सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच 24 घंटे तक चले मुठभेड़ में 8 माओवादी मारे गए थे। इसके बाद जून में एक पत्रकार ने गांव का दौरा कर दावा किया कि यहां एक माओवादी स्कूल और बच्चों का प्रशिक्षण केंद्र संचालित होता है। पत्रकार ने बांस के बने ढांचों, भारी मात्रा में ‘पैरागॉन चप्पलें’ और दवाइयों को आधार बनाते हुए यह दावा किया। सुरक्षा बलों ने इन सामग्रियों को जब्त कर नष्ट कर दिया।
हालांकि, रेकावाया गांव के लोगों ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि यह स्कूल ‘भूमकाल छात्रावास’ के नाम से जाना जाता है और इसे माओवादियों का कोई समर्थन नहीं है।
गांव वालों का पक्ष
ग्रामीणों का कहना है कि यह छात्रावास 13 ग्राम पंचायतों द्वारा संचालित होता है। प्रत्येक परिवार हर महीने 2 किलो चावल दान करता है और स्कूल के संचालन के लिए 4 लाख रुपये का वार्षिक बजट जुटाया जाता है। इस स्कूल में पहली से पांचवीं कक्षा तक के 115 बच्चे पढ़ते हैं। ग्रामीणों ने दावा किया कि मई में गर्मियों की छुट्टियों के कारण स्कूल खाली था और मुठभेड़ पास की पहाड़ियों में हुई थी, न कि स्कूल परिसर में।
शिक्षकों का बयान
स्कूल में पढ़ा रहे बस्सू हलामी ने बताया कि यह स्कूल 2022 से ग्राम पंचायतों द्वारा संचालित हो रहा है। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि स्कूल इससे पहले भी चालू था लेकिन यह नहीं बताया कि तब इसे कौन चलाता था। बस्सू ने यह भी कहा कि उन्होंने खुद इसी स्कूल से पढ़ाई की है लेकिन उनके पास स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र नहीं है।
माओवादी प्रभाव की आशंका
ग्रामीणों के दावों के बावजूद, मीडिया और सुरक्षा बलों द्वारा स्कूल पर माओवादी प्रभाव के आरोप लगाए गए हैं। सुरक्षा बलों ने कहा कि यह क्षेत्र माओवादियों का गढ़ रहा है और यहां माओवादी गतिविधियां संचालित होती रही हैं।
स्थानीय विरोध
रेकावाया और आसपास के ग्रामीणों ने इन आरोपों का विरोध किया है। उनका कहना है कि बाहरी ताकतें उनके विकास के प्रयासों को बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं।
स्थिति गंभीर
बस्तर में 2024 में माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष तेज हो गया है। ‘ऑपरेशन प्रहार’ के तहत 185 माओवादी मारे गए हैं, लेकिन इस लड़ाई के बीच आम जनता, खासकर बच्चों, पर पड़ रहे असर को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।