नई दिल्ली: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने न्याय की प्रतीक मानी जाने वाली ‘Lady Justice Statue’ प्रतिमा को फिर से डिजाइन किया है, जिससे यह अपने औपनिवेशिक अतीत से दूरी बनाते हुए भारतीय न्याय प्रणाली के विकास को दर्शाती है। पारंपरिक रूप से इस प्रतिमा को आंखों पर पट्टी और हाथ में तलवार के साथ दर्शाया जाता था, लेकिन अब इस प्रतिमा में बदलाव किए गए हैं। नई प्रतिमा से आंखों की पट्टी हटा दी गई है और तलवार की जगह संविधान को थमाया गया है, जो भारतीय न्याय में एक नए युग की शुरुआत का संकेत है।
आंखों से पट्टी हटाई गई: पुरानी प्रतिमा में बंधी आंखों की पट्टी यह दिखाती थी कि न्याय बाहरी प्रभाव, जैसे धन या शक्ति से अंधा होता है। नई प्रतिमा में आंखों से पट्टी हटाई गई है, जिससे यह संदेश दिया गया है कि अब न्याय सबकुछ देखता है और हर स्थिति से अवगत है।
संविधान बनाम तलवार: पुरानी प्रतिमा में तलवार कानून लागू करने और सजा देने की शक्ति का प्रतीक थी, जबकि नई प्रतिमा में तलवार के स्थान पर संविधान को रखा गया है। यह बदलाव न्याय की संवैधानिक नींव पर आधारित होने की ओर इशारा करता है, जो भारत की बदलती कानूनी संरचना के अनुरूप है।
पारंपरिक भारतीय परिधान: नई प्रतिमा में पश्चिमी पोशाक की जगह भारतीय साड़ी को शामिल किया गया है, जो न्यायपालिका में भारतीय पहचान को अपनाने की ओर बढ़ते बदलाव को दर्शाता है।
खुली आंखें: पुरानी प्रतिमा की खुली आंखें समाज की समस्याओं को पहचानकर निष्पक्षता के साथ न्याय करने की दिशा में न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका का प्रतीक हैं। यह परिवर्तन निष्पक्षता की जगह समानता के लिए संघर्ष के महत्व को दर्शाता है।
इन बदलावों के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने न्याय प्रणाली को आधुनिक बनाने और भारतीय मूल्यों को प्राथमिकता देने की दिशा में कदम बढ़ाया है, जो न्यायपालिका को औपनिवेशिक अतीत से मुक्त करने का प्रयास है।