शंकराचार्य का सवाल : मोहन भागवत बताएं किस अनुसंधान से पता चल गया कि वर्ण पंडितों ने बनाया है

रायपुर (छत्तीसगढ़)। समाज में वर्ण पंडितों ने बनाए। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान पर अब शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सवाल उठाया है। उन्होंने कहा- जब गीता जी में भगवान ने स्वयं कहा है कि वर्ण उन्होंने बनाए तो भागवत जी ने कौन से अनुसंधान के आधार पर यह बात कही है उन्हें बताना चाहिए।

रायपुर में शंकराचार्य से मोहन भागवत के बयान को लेकर किए गए सवाल पर कहा, ‘उनका (मोहन भागवत का) बहुत लंबा सामाजिक जीवन है, कुछ कहते होंगे तो जिम्मेदारी से कहते होंगे। अब हमको जब तक पता न चल जाए कि उन्होंने किस आधार पर इतनी बड़ी बात कह दी तब तक हम क्या बोलें। वे ऐसे व्यक्ति नहीं हैं कि वे कोई बात बोलें और हम डांट दें। भागवत जी बड़े आदमी हैं। हम समझते हैं कि जो कुछ कहेंगे जिम्मेदारी से कहेंगे। अब उन्होंने कौन सा ऐसा अनुसंधान कर लिया जिससे पता चल गया कि वर्ण पंडितों ने बनाया है।’

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने हिंदू राष्ट्र की मांग को भी गलत बताया। उन्होंने कहा, ‘यह सब जुमलेबाजी है। जो लोग भी यह मांग उठा रहे हैं वह हिंदू राष्ट्र का खाका सामने क्यों नहीं रखते। हिंदू राष्ट्र होगा तो राजनीतिक व्यवस्था में क्या बदलेगा। इसका खाका सामने रखे बिना इस पर बात करना बेमानी है।
स्वामी करपात्री जी महाराज ने हिंदू राष्ट्र की मांग को गलत कहा था। उनका कहना था कि हिंदू राष्ट्र से कुछ नहीं होगा। कहने को तो रावण भी हिंदू था और कंस भी। एक ब्राह्मण था और एक क्षत्रिय, लेकिन उनका हिंदू राष्ट्र कभी किसी का आदर्श नहीं रहा। करपात्री जी रामराज्य की मांग करते थे। वह शासन का आदर्श है। जहां प्रजा सुखी है, सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव है। जहां का राजा प्रजा के प्रति समर्पित है। वह प्रजा हित में कुछ भी छोड़ने को तैयार है।’

शंकराचार्य ने कहा, ‘धर्म का काम अलग है और राजनीति का काम अलग। जिस दिन से हम राजनीति में आ गए उस दिन से धर्माचार्य नहीं रहे। भले ही हम इसी तरह का कपड़ा पहनें। हालांकि उनका कपड़ा उतरवा लेना चाहिए नियम के अनुसार।

चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो, सपा-बसपा हो, दक्षिण की पार्टियां हों, उत्तर की पार्टियां हों जो भी राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में पंजीकृत हुआ वह धर्मनिरपेक्ष हो जाता है, क्योंकि राजनीतिक दलों ने रिटेन में धर्मनिरपेक्षता की शपथ लेकर खुद को रजिस्टर कराया है। जो भी राजनीतिक पार्टी का सदस्य बन गया, वह धर्म निरपेक्ष हो गया।

ऐसे में एक ही साथ आप धार्मिक भी हो और धर्मनिरपेक्ष भी हो, दोनों नहीं हो सकते। अभी हम धार्मिक हैं क्योंकि किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हुए हैं। हम धर्म के मामले में बोल सकते हैं, लेकिन जैसे ही किसी राजनीतिक दल से जुड़े, हम धर्मनिरपेक्ष हो जाएंगे। अगर कोई महात्मा जैसा दिखने वाला व्यक्ति गेरुआ कपड़ा पहने संसद या विधानसभा में दिख रहा हो तो यह मत समझिए कि वह धार्मिक है।’

शंकराचार्य ने कहा, हमारे राजनेता अपने वोट के लिए कुछ भी कर सकते हैं… जिस धर्मग्रंथ पर पूरा भारत आस्था रखता है। गांव-गांव में मंच लगा हुआ है वहां रामचरित मानस कही-सुनी जा रही है। आज की तारीख में भारत में सबसे अधिक किसी ग्रंथ को पढ़ा या सुना जाता है अथवा उसकी व्याख्या होती है तो वह रामचरित मानस है। उस मानस की प्रतियों को आप फाड़ रहे हो, जला रहे हो, पैरों से कुचल रहे हो- यह अच्छा नहीं है।
मेरा कहना है कि आप राजनीतिक कारणों से दो वर्ग पैदा कर रहे हो। एक वर्ग को अपने में मिला लोगे तो आपके वोट बढ़ जाएंगे-आपको सत्ता मिल जाएगी। आपको सत्ता मिले हमें क्या बाधा है, लेकिन यह तरीका अपनाकर आप सत्ता लोगे जिससे समाज दो फाड़ हाे जाए?
शालिग्राम शिला की शोभायात्रा निकालने और उसकी प्रतिमा बनाने को लेकर छिड़े विवाद में शंकराचार्य ने कहा कि राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट जल्दबाजी में व्यवस्था तोड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘आपने पहले बता दिया कि यह शालिग्राम शिला है। शालिग्राम शिला की हम लोग पूजा करते हैं। अब पूजा करने की चीज पर आप छैनी-हथौड़ी चलाओगे तो किसे स्वीकार होगा।
गर्भ में बच्चा आता है तो पहले घरवालों को, फिर बाहर वालों को पता चलता है। उत्सव आदि मनाने लगते हैं, लेकिन जब तक आंख, नाक, कान, मुंह बन जाने तक वह बाहर नहीं आता। तब तक जनता उसे नहीं देख सकती। भगवान ने यह व्यवस्था बनाई है तो उसे हम क्यों नहीं स्वीकार कर लेते। हम भी उसी पत्थर से मूर्ति बना लेते। बाद में उसकी शोभायात्रा निकालते। तीन दिन में लाए-तीस दिन में लाते, लेकिन यह जल्दबाजी है कि हम लोगों को कुछ दिखा दें।