रमन सरकार के समय तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ दर्ज आर्थिक अपराध के मामले के खात्मा की जांच एजेंसी एंटी करप्शन ब्यूरों द्वारा लगाए गए आवेदन पर आज अंतिम बहस हुई। शासन की ओर से लोक अभियोजक सुदर्शन महलवार व मामले के शिकायतकर्ता विजय बघेल की ओर से अधिवक्ता सुरेन्द्र सिंह ने न्यायालय के समक्ष अपने पक्ष रखे। दोनों पक्षों को सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश अजीत कुमार राजभानू ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। मामले की अगली तिथि 17 अक्टूबर निर्धारित की गई है।
दुर्ग (छत्तीसगढ़)। भिलाई विशेष क्षेत्र प्राधिकरण (साडा) के अस्तित्व में रहने के दौरान पाटन क्षेत्र के विधायक व वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर अपने पद का दुरोपयोग कर वसुंधरा नगर में गलत आकार का प्लाट नियम विरुद्ध आवंटन कराए जाने का आरोप लगाया गया था। शिकायत में आरोप लगाया था कि भूपेश बघेल ने अपने पद का दुरोपयोग कर गलत तरीके से अपनी माता व पत्नि के नाम से भूखंड/मकान का आवंटन कराया था। भिलाई में विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) के अस्तिव के दौरान यह भ्रष्टाचार किया गया था। शिकायत में बताया गया थी कि इस दौरान भूपेश बघेल पाटन के विधायक होने के कारण साडा के पदेन सदस्य थे और अपने पद का दुरोपयोग कर आवंटन कराया। इस शिकायत पर एसीबी ने कार्रवाई करते हुए वर्ष 2017 में भूपेश बघेल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1)(डी), सहपठित धारा 13(2) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया था। मामले को विचारण के लिए न्यायालय में पेश कर दिया गया था।
आर्थिक भ्रष्टाचार का यह मामला अदालत में विचारण योग्य नहीं होने का हवाला देते हुए एसीबी ने प्रकरण के खात्मा के लिए अदालत में पिछले दिनों आवेदन प्रस्तुत किया था। एसीबी ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत आवेदन में बताया था कि शिकायत के आधार पर की गई विवेचना के दौरान किसी प्रकार के आर्थिक अपराध किए जाने के तथ्य व साक्ष्य नहीं मिले है। जिसके चलते यह प्रकरण अदालत में विचारण योग्य नहीं है।
आवेदन पर विचार करते हुए कोर्ट ने खात्मा के संबंध में संबंधित पक्ष विजय बघेल के पक्ष की सुनवाई के लिए 10 अक्टूबर की तिथि तय की थी। विजय बघेल की ओर से अधिवक्ता सुरेन्द्र सिंह अदालत के समक्ष उपस्थित हुए। उन्होंने अदालत को बताया कि एसीबी द्वारा शिकायत की जांच के बाद उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर भूपेश बघेल के खिलाफ आर्थिक अपराध का प्रकरण दर्ज किया था। प्रकरण में पर्याप्त तथ्य व साक्ष्य मौजूद है। प्लाटों का आवंटन में नियमों की अनदेखी की गई थी। 12 प्लाट्स को एक बना कर बेचा जाना नियम के विरुद्ध है। इसके अलावा जिन व्यक्तियों को प्लाट का आवंटन किया गया है, वे आवंटन प्राप्त करने के पात्र ही नहीं है। जिसके आधार पर प्रकरण न्यायालय में विचारण के योग्य है। वहीं शासन की ओर से लोक अभियोजक सुदर्शन महलवार ने पक्ष रखते हुए बताया कि शासन द्वारा साडा का गठन किया गया था और उसे पर्याप्त अधिकार दिए गए थे। जिसके तहत शासकीय जमीन का अधिग्रहण, विकसित करना व ले आउट तैयार कर उन्हें विक्रय करने का अधिकार साडा के पास था। वहीं साड़ा द्वारा पहले आओ पहले पाओं की नीति के तहत प्लाटों का आवंटन किया जाता ता। आकार पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं थीा, वहीं कोई भी व्यक्ति प्लाट का आवंटन प्राप्त करने का अधिकारी था। इस आधार पर एसीबी द्वारा प्रस्तुत प्रकरण में किसी प्रकार का आर्थिक अपराध का होना नहीं पाया जाता है। अत: प्रकरण खारिज किए जाने योग्य है। एसीबी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश अजीत कुमार राजभानू सिंह ने दोनों पक्षो की दलील को सुना और प्रकरण पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।