परिवार की गुजर बसर के लिए चित्रकला को जीवकोपार्जन का साधन बनाने वाली 80 वर्ष की आदिवासी महिला ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। उसके द्वारा बनाई गई पेंटिंग को प्रदर्शन के लिए इटली के मिलान शहर में आयोजित प्रदर्शनी में रखा गया है। गौरव की बात यह है कि इस आदिवासी महिला द्वारा बनाए गए चित्रों के प्रदर्शनी के आमंत्रण पत्र के कव्हर पर भी जगह दी गई है। यह प्रदर्शनी 11 अक्टूबर तक चलेगी। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कला के क्षेत्र में स्वयं को साबित करने वाली यह बुजुर्ग आदिवासी महिला अनपढ़ है।
भोपाल (मध्य प्रदेश)। हम बात कर रहें है मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के छोटे से गांव लोरहा की रहने वालीं आदिवासी महिला जोधइया बाई बेगा (80 वर्ष) की। जोधइया बाई के पति की लगभग 40 वर्ष पूर्व मौत हो गई थी। जिसके बाद उसके व परिवार के समक्ष जीवकोपार्जन की समस्या खड़ी हो गई। तब जोधइया बाई के गुरु ने उन्हें चित्रकला करने के लिए प्रेरित किया। अनपढ़ होने बावजूद उन्होंने अपना जीवन आदिवासी चित्रकला को समर्पित कर दिया। समर्पण रंग लाया और जोधइया बाई द्वारा बनाए गए चित्रों को पहचान मिलने लगी। उन्होंने आदिवासी पैटर्न पर चित्रकला को निखारने के लिए देश के कई हिस्सों का दौरा भी किया और इस दौरान जानवरों के साथ जो कुछ भी देखती उसे चित्रों में उकेर देती। जोधईया बाई के गुरु आशीष स्वामी हैं. वो यहां जनगण तस्वीर खाना चलाते हैं।
उनकी पेंटिंग का प्रदर्शन इटली के मिलान शहर में आयोजित प्रदर्शनी में किए जाने की जानकारी उनके गुरु ने ही उन्हें दी। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान स्थापित करने वाली आदिवासी महिला जोधइया बाई बेगा की चित्रकारी को जनजातीय संग्रहालय, शांति निकेतन, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, मानस संग्रहालय में प्रदर्सित किया जा चुका है। साथ ही कला के कद्रदान कई विदेशी भी उनके लोकचित्र अपने साथ ले जा चुके हैं।