नई दिल्ली। जैन समाज के सबसे बड़े तीर्थ क्षेत्र सम्मेद शिखरजी पहाड़ को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने का देशभर में भारी विरोध हो रहा है। जैन समाज के सभी पंथ इस आंदोलन में जुड़ गए हैं। जैन मान्यता के अनुसार 20 तीर्थंकर भगवान इस पहाड़ से मोक्ष गए हैं। लाखों वर्षों का इस तीर्थ क्षेत्र का प्रभाविक इतिहास है। जैन धर्म के लोगों की आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र है।
पौराणिक स्तर पर यह सभी प्रमाणिक है। 1000 वर्ष में भारत में कई आक्रांताओं ने आक्रमण किए। मंदिरों को तोड़ा फिर भी इस तीर्थ क्षेत्र में कभी भी इस तरह का कृत्य किसी भी अक्रांता और अंग्रेज सरकार ने भी नहीं किया। जो स्वतंत्र भारत के हिन्दू धर्म पारायण राज में जैन समाज की आस्थाओं से खिलवाड़ करने का काम किया गया है।
झारखंड सरकार और केंद्र सरकार द्वारा इस तीर्थ स्थल को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के बाद से यहां पर बड़े पैमाने पर असामाजिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं। पहाड़ पर पर्यटक मांस मटन और शराब का सेवन कर रहे हैं। जैन धर्म के लोग अपनी आस्था के अनुसार पहाड़ की वंदना भी नहीं कर पा रहे हैं। पहली बार जैन धर्म की आस्था में इस तरीके का प्रहार किया गया है जिसके कारण संपूर्ण देश में हर राज्य में गांव कस्बे से लेकर हर शहर में आंदोलन शुरु हो गए हैं। बूढ़े बच्चे जवान और सभी पंथो के जैन श्रद्धालु सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं।
जैन समाज अहिंसक समाज है। समाज के सभी वर्ग इससे जुड़ते हैं। भारत के निर्माण में सबसे ज्यादा टैक्स यही समाज देता है। हर सामाजिक जिम्मेदारियों मे बढ़-चढ़कर भाग लेता है। अपनी कमाई का बहुत बड़ा अंश दान करता है। सामाजिक स्तर पर शिक्षा एवं स्वास्थ्य के बड़े कार्यक्रम जैन समाज द्वारा सैकड़ों वर्षों से किए जाते हैं। जैन समाज की आस्था पर पहली बार इस तरीके का प्रहार होने से जैन समाज के साथ-साथ सभी तपस्वी साधु-संत पर्यटन स्थल बनाने की विरोध में एकजुट होकर खड़े हो रहे हैं।
केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा जल्द ही यदि अधिसूचना को निरस्त नहीं किया गया तो जैन समाज के लोग अपनी धार्मिक आस्था और तीर्थ क्षेत्र को बचाने के लिए अहिंसात्मक तरीके से विरोध करने के साथ-साथ अपने व्यापार को भी लंबे समय के लिये बंद कर सकते हैं। जो भारत जैसे देश की आर्थिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित करेगा। शांतिपूर्ण अहिंसक और अल्पसंख्यक समाज की धार्मिक भावनाओं को जिस तरीके से आहत किया गया है। उसकी बड़ी प्रतिक्रिया जैन समाज के साथ-साथ सभी अल्पसंख्यक समाज और हिंदुओं के विभिन्न समुदाय में हो रही है। सरकार को समय रहते निर्णय लेकर इसे संरक्षित तीर्थ क्षेत्र घोषित कर इसके धार्मिक अस्तित्व को बनाए रखने की दिशा में त्वरित निर्णय लेने की जरूरत है।