नई दिल्ली। राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती का मामले में केंद्र सरकार ने इस कानून का बचाव किया है। केंद्र सरकार ने कहा कि इस पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य में पांच जजों की बेंच का फैसला बिल्कुल सही कानून है। संविधान पीठ ने कानून को बरकरार रखा था और ये फैसला बाध्यकारी है। तीन जजों की बेंच पुनर्विचार नहीं कर सकती। कानून को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए। केदार नाथ सिंह फैसला केस के विश्लेषण और गहन परीक्षण के बाद दिया गया, जिसकी पुष्टि बाद के कई फैसलों में हुई। हालही, विनोद दुआ मामले में भी इस पर भरोसा रखा गया।
केंद्र सरकार ने कहा, राजद्रोह कानून के दुरुपयोग की घटनाएं पिछले फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए पर्याप्त औचित्य नहीं हैं। किसी प्रावधान में दुरुपयोग होना कभी भी संविधान पीठ के बाध्यकारी फैसले पर पुनर्विचार करने का औचित्य नहीं होगा। संवैधानिक पीठ पहले ही समानता के अधिकार और जीने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों के संदर्भ में धारा 124 A के सभी पहलुओं की जांच कर चुकी है। याचिकाकर्ताओं ने कोई औचित्य नहीं दिखाया है कि पिछले निर्णयों पर पुनर्विचार क्यों किया जाना चाहिए।
साथ ही कहा, लगभग छह दशकों से एक संविधान पीठ द्वारा घोषित लंबे समय से स्थापित कानून पर केस टू केस आधार पर इस तरह के दुरुपयोग को रोकने का उपाय हो। फिर भी अगर तीन जजों की बेंच इन दलीलों से संतुष्ट नहीं है तो वो इसे बड़ी बेंच को रेफर कर सकती है, क्योंकि तीन जजों की बेंच सुनवाई नहीं कर सकती। जनरल तुषार मेहता ने लिखित दलीलें दाखिल की हैं। सीजेआई एनवी रमना के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच में सुनवाई होनी है।
दरअसल, राजद्रोह कानून की वैधता का मामला 7 जजों की संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार सुबह तक सभी पक्षों को लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा था।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को सोमवार सुबह तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा था। इस पर दस मई को दो बजे सुनवाई होगी।
बता दें सुप्रीम कोर्ट आईपीसी की धारा 124 ए यानी राजद्रोह के कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। सीजेआई एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की स्पेशल बेंच में सुनवाई हो रही है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, अरूण शौरी, पूर्व सैन्य अधिकारी और महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए कहा कि कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए जा सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता ‘कानून का दुरुपयोग’ है और उसने पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे केंद्र से सवाल किया था कि वह इस प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं कर रहा है। क्या उसे आजादी के 75 साल भी इस कानून की जरूरत है।