दुर्ग (छत्तीसगढ़)। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष व जिला सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की 10 योजनाओं के अंतर्गत एक विशेष जागरूकता कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है। जिसके अंतर्गत विभिन्न शासकीय विभागों के संयुक्त संयोजन से व्यापक रूप से प्रचार प्रसार किया जाएगा। जिसके अंतर्गत आज शिक्षा विभाग के सहयोग से एडीजे आनंद प्रकाश वरियाल द्वारा ऑनलाइन के माध्यम से स्कूली बच्चों को नालसा की योजना यौन शोषण के संबंध में जानकारी प्रदान की।
उन्होंने बताया कि हमारी संस्कृति में बाल मन को पवित्र दृष्टि से देता जाता हैं, कहते है बच्चों के दिल में ईश्वर का वास होता हैं। मगर आज इन्ही बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने वाले अपराध दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे है । बच्चों को शारीरिक मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाना बाल शोषण कहलाता हैं ।
एडीजे वरियाल ने बताया कि बाल यौन शोषण भारत में गैरकानूनी है और इसके अंतर्गत तमाम यौन गतिविधियां आती हैं। जिनमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी के फोटो रखना, किसी बच्चे के सामने किसी भी तरह की यौन गतिविधि करना, जिसमें अश्लील फिल्में देखना भी शामिल है , बच्चे की यौन तस्वीर लेना, डाउनलोड करना, इन्हें देखना या बांटना , किसी बच्चे को गलत तरीके से छूना, वह कपड़े में हो या बिना कपड़ों के शामिल हैं। बच्चे आमतौर पर यौन उत्पीड़न के बारे में बात नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि यह उनकी गलती है या शोषण करने वाला उन्हें यह समझाने में सफल हो जाता है कि यह सामान्य है या कोई खेल है।
माता-पिता बच्चों में बढाएं विश्वास
उन्होंने कहा कि भारत में यौन संबंधी बातों पर खुल कर कहना अपराध एवं शर्म का विषय समझा जाता हैं। इसलिए बच्चे अपनी बात माता पिता के सामने रखने में खुद को असहज मानते हैं और अगर बच्चे बता भी दे तो माता पिता ऐसी घटनाओ को छिपा जाते हैं। ऐसे में बच्चो को सही सलाह एवं हिम्मत ना मिलने के कारण यह अपराध बढ़ता ही जा रहा हैं। बच्चों को बाल शोषण से बचाने के लिए माता-पिता की यह जिम्मेदारी बनती है की वह बच्चों को जागरूक करें, बच्चों को यह बात बताएं कि यदि कोई व्यक्ति परेशान करें, डराए या धमकाए तो इसकी जानकारी जल्द से जल्द माता-पिता को दें। यह छोटी समस्या नहीं है बाल शोषण के कारण कई बच्चे अपनी जान तक गंवा देते हैं। हमें अपने बच्चों को बाल शोषण से बचाए रखने के लिए बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखना चाहिए। यदि बच्चा चिड़चिड़ा सा दिखाई देता है तब माता पिता को बच्चे से प्यार से बात करना चाहिए और बच्चे की परेशानी का कारण पूछना चाहिए। इस स्थिति में माता पिता को अपने बच्चे को धमकाना या डराना नहीं चाहिए। डराने से बच्चा अपने माता पिता से खुलकर बात नहीं कर पाता है । यदि कोई भी व्यक्ति 18 साल के कम उम्र के बच्चे पर अत्याचार करता है तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जाती है ।
कानून में कड़ी सजा का है प्रावधान
भारत में बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार के खि़लाफ सबसे प्रमुख कानून 2012 में पारित यौन अपराध के खि़लाफ बच्चों का संरक्षण कानून (POCSO) है। इसमें अपराधों को चिह्नित कर उनके लिये सख्त सजा निर्धारित की गई है। साथ ही त्वरित सुनवाई के लिये स्पेशल कोर्ट का भी प्रावधान है। वैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार), 372 (वेशयावृत्ति के लिये लड़कियों की बिक्री), 373 (वेश्यावृत्ति के लिये लड़कियों की खरीद) तथा 377 (अप्राकृतिक कृत्य) के अंतर्गत यौन अपराधों पर अंकुश लगाने हेतु सख्त कानून का प्रावधान है। जिसके अंतर्गत आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक का प्रावधान दिया गया है।
