रायपुर (छत्तीसगढ़)। प्रदेश के गौठान अब गोबर की बिजली से जगमग होंगे। गौठानों में स्थापित रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को तैयार करने के लिए लगी मशीनें भी गोबर की बिजली से चलेंगी। गौठान अब बिजली के मामले में स्वावलंबी होंगे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन बेमेतरा जिला मुख्यालय के बेसिक स्कूल मैदान में आयोजित किसान सम्मेलन में गोबर से बिजली उत्पादन की महत्वाकांक्षी और ऐतिहासिक परियोजना का शुभारंभ करेंगे। राज्य के कई गौठानों में गोबर से बिजली उत्पादन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर 2021 का दिन छत्तीसगढ़ राज्य के लिए अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक दिन होगा। मुख्यमंत्री बघेल 2 अक्टूबर को बेमेतरा जिले के साजा विकासखण्ड के आदर्श गौठान राखी सहित दुर्ग जिले के पाटन विकासखण्ड स्थित सिकोला गौठान तथा रायपुर जिले के आरंग विकासखण्ड स्थित बनचरौदा गौठान में गोबर से विद्युत उत्पादन परियोजना का शुभारंभ करेंगे। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गौठानों में गोबर से विद्युत उत्पादन की परियोजना को लेकर बीते कई महीनों से तैयारियां की जा रही थी, जो 2 अक्टूबर को मूूर्तरूप लेने जा रही है। गोबर से सस्ती बिजली उत्पादन होने के साथ-साथ जैविक खाद का भी उत्पादन होगा। इससे गौठान समितियों और महिला स्व-सहायता समूहों को दोहरा लाभ होगा।
बता दें कि सुराजी गांव योजना के तहत छत्तीसगढ़ राज्य के लगभग 6 हजार गांवों में गौठानों का निर्माण कराकर उन्हें रूरल इंडस्ट्रियल पार्क के रूप में विकसित किया गया है, यहां गोधन न्याय योजना के तहत दो रूपए किलो में गोबर की खरीदी कर बड़े पैमाने पर जैविक खाद का उत्पादन एवं अन्य आयमूलक गतिविधियां समूह की महिलाओं द्वारा संचालित की जा रही है। गौठानों में क्रय गोबर से विद्युत उत्पादन की भी शुरूआत 2 अक्टूबर से की जा रही है। इसके लिए प्रथम चरण में बेमेतरा जिले के राखी, दुर्ग के सिकोला और रायपुर जिले के बनचरौदा में गोबर से बिजली उत्पादन की यूनिट लगाई गई हैै। एक यूनिट से 85 क्यूबिक घन मीटर गैस बनेगी। चूंकि एक क्यूबिक घन मीटर से 1.8 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होता है। इससे एक यूनिट में 153 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होगा। इस प्रकार उक्त तीनों गौठानों में स्थापित बायो गैस जेनसेट इकाईयों से लगभग 460 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होगा, जिससे गौठानों में प्रकाश व्यवस्था के साथ-साथ वहां स्थापित मशीनों का संचालन हो सकेगा।
इस यूनिट से बिजली उत्पादन के बाद शेष स्लरी के पानी का उपयोग बाड़ी और चारागाह में सिंचाई के लिए होगा तथा बाकी अवशेष से जैविक खाद तैयार होगी। इस तरह से देखा जाए तो गोबर से पहले विद्युत उत्पादन और उसके बाद शत-प्रतिशत मात्रा में जैविक खाद प्राप्त होगी। इससे गौठान समितियों और महिला समूहों को दोहरा लाभ मिलेगा।

