दुर्ग (छत्तीसगढ़)। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष व जिला सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में कोविड-19 के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए 23 अगस्त को विशेष न्यायाधीश शैलेश तिवारी, अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आदित्य जोशी एवं श्री भानु प्रताप सिंह त्यागी द्वारा ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम बताया कि पुलिस जब गिरफ्तारी कर लेती है तो इसका मतलब ये नहीं है की गिरफ्तार किऐ गऐ व्यक्ति के सारे अधिकार खत्म हो गए। वह मुजरिम बन गया है। बल्कि अभी भी उसके काफी अधिकार है, जिनके बारे में उसे जानना चाहिए ताकि उसके कानूनी अधिकारों का उल्लंघन न हो।
न्यायायिक अधिकारियों ने बताया कि भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को कुछ मूल अधिकार प्रदान किए है जिनमें स्वतन्त्रता का अधिकार भी शामिल है। संविधान के अनुच्छेद 21 में नागरिकों के प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता का मूल अधिकार दिया है। गिरफ्तारी की दशा में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के अधिकार व गिरफ्तारी की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है तभी नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा की जा सकती है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में गिरफ्तारी की प्रक्रिया बताई गई जिसमें गिरफ्तार किऐ गऐ व्यक्ति के अधिकार एवं गिरफ्तारी करने बाले पुलिस अधिकारी के अधिकार व कर्तव्य बताऐ गऐ है।
गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह अपने नाम का टोकन धारण करें और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का गिरफ्तारी पंचनामा तैयार करें। जिस पर दो व्यक्तियों और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के हस्ताक्षर कराएगा। गिरफ्तार करते समय गिरफ्तार किऐ गऐ व्यक्ति का कोई रिश्तेदार मौजूद नही है तो गिरफ्तार किऐ गऐ व्यक्ति को अविलम्ब ऐसी गिरफ्तारी की सूचना देगा (धारा 41बी)। एक महिला को केवल एक महिला कॉन्स्टेबल की उपस्थिति में गिरफ्तार किया जाना चाहिए और सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद कोई भी महिला गिरफ्तार नहीं की जानी चाहिए। ये केवल तभी हो सकता है जब व्यक्ति को गिरफ्तार करना बेहद जरूरी है। पुलिस अधिकारी गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तार करते के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेगा।

सीआरपीसी की धारा 41 के अनुसार पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है, यदि वह भारत के किसी भी कानून का उल्लंघन कर चुका है या करने वाला है या करने की तैयारी कर रहा है। लेकिन ऐसी गिरफ्तारी के लिए भी पुलिस के लिए कुछ नियम है तथा गिरफ्तार व्यक्ति के कुछ अधिकार है जिसका पालन करना आवश्यक है। पुलिस किसी को भी अपनी मनमर्जी तरीके से गिरफ्तार नहीं कर सकती बल्कि उसे गिरफ्तारी के लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनानी होती है। अन्यथा गिरफ्तारी गैरकानूनी मानी जाती है। यदि कोई पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह न सिर्फ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता का उल्लंघन माना जाता है, बल्कि यह स्थिति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21और 22 में दिए गए मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है। लिहाजा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर पीड़ित पक्ष संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट जा सकता है।
