नई दिल्ली। इशरत जहां एनकाउंटर केस में अहमदाबाद की विशेष सीबीआई कोर्ट ने शेष तीन पुलिस अधिकारियों को भी बरी कर दिया है। 17 साल पुराने इस मामले में प्रारंभिक तौर पर सीबीआई अदालत के समक्ष यह साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाई कि मुठभेड़ में मारे गए लोग आंतकी नहीं थे। अदालत ने तरुण बरोट और जीएल सिंघल समेत तीन पुलिस अफसरों को केस से बरी कर दिया है। ये तीनों अधिकारी ही इस केस में आखिरी तीन आरोपी थे।
इस मामले में पहले ही 4 अधिकारियों को बरी कर दिया था। इसके बाद आईपीएस अधिकारी जीएल सिंघल, रिटायर्ड पुलिस अफसर तरुण बरोट और अनाजू चौधरी ने सीबीआई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मांग की थी कि उन्हें भी बरी किया जाए। सीबीआई की ओर से केस में चुनौती न दिए जाने के चलते यह मामला एक तरह से समाप्त ही हो चुका था। इससे पहले 4 अधिकारियों को डिस्चार्ज किए जाने के खिलाफ सीबीआई ने अपील नहीं की थी। ऐसे में इस आधार पर तरुण बरोट और सिंघल समेत तीन अधिकारियों ने खुद को भी रिहा करने की मांग की।
आतंकी न होने का सबूत नहीं मिला
मामले की सुनवाई करते हुए सीबीआई कोर्ट के विशेष न्यायाधीश वीआर रावल ने कहा कि प्रथम दृष्ट्या जो रिकॉर्ड सामने रखा गया है, उससे यह साबित नहीं होता कि इशरत जहां समेत चारों लोग आतंकी नहीं थे। इशरत जहां, प्राणेश पिल्लई, अमजद अली राणा और जीशान जौहर की 15 जून 2004 को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम से मुठभेड़ हुई थी। इसमें चारों मारे गए थे।
पुलिस का आरोप, नरेंद्र मोदी की हत्या की फिराक में थे चारों
इस एनकाउंटर को अहमदाबाद के डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच यूनिट के वंजारा लीड कर रहे थे। पुलिस का कहना था कि ये चारों लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे थे। इस केस में सीबीआई ने एनराउंटर के 9 साल बाद 2013 में चार्जशीट दाखिल की थी। जिसमें 7 पुलिस अधिकारियों को आरोपी बनाया गया था।
इन अधिकारियों के नाम थे चार्जशीट में शामिल
इस एनकाउंटर में पीपी पांडे, वंजारा, एनके आमीन, जेजी परमार, जीएल सिंघल, तरुण बरोट शामिल थे। इन सभी पुलिस अधिकारियों पर हत्या, मर्डर और सबूतों को मिटाने का आरोप लगाया गया था। लेकिन 8 साल बाद सभी बरी हो गए हैं।
