दुर्ग (छत्तीसगढ़)। जन्म कुंडली में मौजूद ग्रहों की प्रतिकूल परिस्थियों के कारण मानव जीवन में दुख व पीड़ा का सामना करना पड़ता है। इसका निवारण करने का कार्य ज्योतिष का है। ज्योतिष एक प्रकाश पुंज रुपी ज्ञान का साहित्य है। जिसके माध्यम से मानव जीवन के अंधकार का पता लगाकर विशेष उपयों द्वारा सुख समृद्धि लाई जा सकती है। मानव ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से अपनी योग्यता वृद्धि व शक्ति के अनुसार इस्तेमाल कर अपना व समाज के प्राणियों का सही मार्गदर्शन करने के साथ अपने जीवन को सफल बना सकता है।
यह कहना के सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य मां दुर्गा बगुलामुखी उपासक पं. एमपी शर्मा व एसपी शर्मा का। पं. शर्मा द्वारा दुर्ग शहर के सिकोला भाठा सब्जी मार्केट के पास तथा भिलाई शहर के राधिका नगर में पानी टंकी के पास दुर्गा ज्योतिष केंद्र का संचालन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि काल सर्प योग के परिणाम जातक को प्रतिकूल प्रभाव ही देते हैं। धन होते हुए भी निर्धनता का जीवन व्यतीत करना, उच्च शिक्षित होते हुए भी बेरोजगारी, सर्व संपन्न होने के बावजूद अविवाहित व विधुर जीवन व्यतीत करना आदि इस योग के प्रभाव के कारण ही होता है। जो व्यक्ति इस योग से ग्रसित होता है, उसे सदैव शारीरिक व मानसिक कष्ट का सामना करना पड़ता है। अनेक रोगों का निदान नहीं हो पाता, शिक्षा व व्यापार के मार्ग में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती है। सारा जीवन अभाव व संघर्ष में ही बीतता है। रिश्तेदारों व पारिवारिक सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ता है। जीवन कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने में व्यतीत होता है और बंधन योग के कारण जेल जाना रड़ता है। जातक के प्रति पत्नी व संतानों का व्यवहार उचित नहीं रहता। संतान का विवाह उचित समय पर नहीं होता। मित्र विश्वासघाच करते है और कर्ज से जातक परेशान रहता है। परिवार के प्रिय व्यक्ति से संबंध टूट जाता है और परिवार में कोई अकाल मृत्य का शिकार हो जाता है। जातक दूसरों का काम करता है और उसका स्वयं का धंधा, व्यवसाय चौपट हो जाता है।
प्रारंभ में इन सभी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए भौतिक उपायों का सहारा लेता है, लेकिन उसे असफलता ही हाथ लगती है। सभी तरफ से निराश होने के बाद वह कुंडली लेकर ज्योतिष अथवा पंडित की शरण में जाता है। वे उसे अनेक छोटे मोटे उपाय या टोटके बतातें है। जिसके बाद भी समस्या का निवारण नहीं होना स्पष्ट करता है कि व्यक्ति काल सर्प योग से ग्रसित है। जिसका उपाय करना जरुरी है। ज्योतिष जगत में इस योग की चर्चा सहसा ही नहीं की गई है। इसका उल्लेख व अस्तित्व शास्त्रों में प्रचीनकाल से ही माना जाता रहा है, लेकिन विशेष ध्यान अब दिया जा रहा है। इस क्षेत्र में अनुसंधान किए जा रहे है। उन्होंने बताया कि किसी भी प्रकार का कालसर्प योद यदि राहु से प्रारंभ हो रहा है तो यह बहुच ज्यादा घातक सिद्ध होता है। जबकि केतु से लेकर राहु तक दिखने वाला कालसर्प योग इतना घाचक नहीं होता है। राहु केतु की कैद से यदि एक-दो ग्रह बाहर निकल आएं तब आंशिक कालसर्प योग होता है। इस दुष्प्रभाव कम रहता है। पं. शर्मा ने बताया कि दस वर्षो में अनेक कुंडलियों का जिज्ञासापूर्व अध्ययन व विवेचना के बाद यह दृंढ मत है कि ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प दोष है। आज कालसर्प योग चर्चा का विषय बना हुआ है। अनेक प्रसिद्ध ज्योतिषियों ने इसे स्वीकार किया है। महर्षि पराशर और वराह मिहिर जैसे प्राचीन ज्योतिषियों ने माना है अपने ग्रंथों में इसका उल्लेख किया है। महर्षि भ्रगु, कल्याण वर्मा, गर्ग आदि ने कालसर्प योग को सिद्ध किया है।